पूजौ ये पुजारयां बायां कांयी कांयी मांगौ

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म्है आया डौड्यां रै बार

दही धमोळ्यौ गूजरी

धमोळ्यौ जी सरवर नार

लांबा गौरा पातळा

अब जागौ जी बायां का बीर

बायर ऊबी औळगड़्या

बैठण वास्यां बैठायस्यां

देस्यां जी दिलड़ी कौ राज

आधौ देस्यां माळवौ

माळवा री लड़ी जुंवार

मोत्यां भरणौ बाजरौ

गौर ये गणगौर माता खोल किंवाड़ी

बायर ऊबी थांनै पूजण वाळी

पूजौ ये पुजारयां बायां कांयी-कांयी मांगौ

अैळ-खैळ कुंडौ मांगां

छाछ भर सुंडौ

जळ भर झाबर बाबल मांगा

राता देही मां

कान कंवर सो बीरौ मांगां

राई सी भोजाई

बढै धुमालै काकौ मांगां

चुड़ला वाळी काकी

पूस उडावण फूंफौ मांगां

हांडा धोवण भुवा

ऊंट चढ्यौ बेहनोई मांगां

सदा सुवागण बै ‘न ये

अतरौ दीज्यै म्हारी गौरल

दीज्यै सौ पिरवार!

हम आयी ड्यौढी के द्वार पर

दही का बिलौना शुरु किया गूजरी ने

बिलोना शुरू किया सरवर की पत्नी ने

यह लम्बे गौरवर्णी और इकहरे बदन वाले हैं

अब तो उठिये बहिन के प्यारे भय्या

बाहर खड़ी हैं सेवा करने वाली

बैठने वालों को आसन दे

देंगे दिल्ली का राज्य

आधा देंगे मालवा

मालवे की कतार वाली ज्वार

और मोतियों जैसा सुन्दर बाजरा उत्पन्न होता है

गौर हे गणगौर माता खोलो अपने मंदिर का किंवाड़

बाहर खड़ी हैं आपको पूजने वाली

पूजो ये पुजारिन लड़कियों तुम क्या-क्या वर मांग रही हो

हमारे घर के आस-पड़ौस में कुआ मांगती हैं

छाछ से भरा हुआ बिलोना

जल से भरा हुआ परिंडा पिता मांगती हैं

गौर वर्णी माता

कन्हैया जैसा भाई मांगती हैं

राधिका जैसी भोजाई

बड़े साफे वाला काका मांगती हैं

चूड़े वाली काकी

घर की सफाई करने वाला फूंफा मांगती हैं

बर्तनों को साफ करने वली बुआ

ऊंट पर सवार बहनोई मांगती हैं

सदा सौभाग्यवती बहिन

इतना तो देना हमारी गौर

और देना भरा पूरा परिवार

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर
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