छोटी-मोटी छांटा ओसरी म्हारा भाभी जी

कोई छांट पड़ी घड़ा के मांय

कोई छान चुवै छपर्यौ चुवै-चुवै बडोड़ी साळ

धोळी जुंवार को खीचड़ौ काळा तिलां को तेल

देवर जिठाण्यां रूसणं कुण ऊंचावै भात

काठौ कसल्यौ कासणूं मचक ऊंचाल्यौ भात

टीबां ढळती आ'खड़ी कोई काग कलेवौ खाय

हाळ्यां, धोळ्यां, रूसणूं कुण उतारै भात

नांनू देवर लाडलौ बो ही उतारै भात

छोटी बड़ी बून्दें बरसने लगी मेरे भाभी जी

कोई बून्द पड़ी 'घड़े' में

कोई 'छान' चू रही ही छप्पर चू रहा चू रही 'बड़ी साळ'

सफेद ज्वार का खीच काले तिल्लों का तेल

देवरानी जेठानी रूठ गयी कौन ऊंचावै भात

कस कर बाँधलो अपना 'कसणा' जलदी से ऊंचा लो भात

टीबे से नीचे उतरते ठोकर से गिर पड़ी कोई कौवा कलेवा खा रहा

कृषक और बैल तो रूठे हुए कौन उतारे भात

छोटा देवर प्यारा वो ही उतारेगा भात

स्रोत
  • पोथी : गणगौर के लोक-गीत ,
  • संपादक : महीपाल सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : सुधन प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : 1
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