सांगरियां सह पाकियां, लूआं री लपटांह।

खोखा लाग्या खिरणनै, दे झाला हिरणांह॥

भावार्थ:- शमी वृक्षों की कच्ची-कच्ची फलियाँ (सांगरी) लूओं की लपटों से पक चुकी है वे पकी हुई कलियाँ (खोखा) हरिणों को संकेतों द्वारा आमंत्रित कर झड़ने लगी है।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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