सूकां तगरां सींगटी, लपट पड़्या ओटाळ।

जी लूआं ले नीसरी, आयो हिरणां काळ॥

भावार्थ:- जल-शून्य घट-कपालों में उनके सींग लगे हुवे हैं, ऊपर की तरफ पैर हो चुके हैं और उलटे पड़े हुवे हैं। उनके प्राण लूओं द्वारा निकाल लिये गये हैं। हरिणों का सर्वनाश प्रस्तुत हो गया है।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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