कैवण काया दोय ही,

जीवण नै इक जीव।

बरसी असाढ बादली,

प्रिया पांतरी पीव॥

झींणी झींणी बादळी,

बायरियौ झींणौह।

कळपावै नित काळ में,

होवै दिन हींणौह॥

बादळ कदैक बरसता,

असाढ महीणै आय।

पण काळ रोप पग ऊभियौ,

बिरखा नहँ बरसाय॥3॥

आभै में चढ बादळी,

ज्यूं त्यूं कियौ जुगाड़।

काळ हाथ आडा किया,

औसरियौ असाढ॥4॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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