च्यारूं भला ने भुंडा होय, एक धारा रहें कोय।

केइ खायक भाव रहसी एक धार, नीपना पछे घटें लिगार॥

भावार्थ : ये चारों भाव-जीव अच्छे और बुरे होते हैं। ये एक धार नहीं रहते। क्षायक भाव एक धार रहेगा, निष्पन्न होने पर फिर घटता नहीं।

स्रोत
  • पोथी : भिक्षु वांड़्गमय भाग 1 ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण, मुनि सुखलाल, मुनि कीर्तिकुमार ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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