खंडायो पिण खंडे लिगार, नित सदा रहें एक धार।

एहवो छे द्रव्य जीव अखंड, अखी थकों रहे इण मंड॥

भावार्थ : खण्ड करने पर यह जीव द्रव्य किंचित भी खण्डित नहीं होता, यह सदा एक धार रहता है। ऐसा यह द्रव्य जीव अखण्ड पदार्थ है और इस सृष्टि में अक्षय बना रहता है।

स्रोत
  • पोथी : भिक्षु वांड़्गमय भाग 1 ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण, मुनि सुखलाल, मुनि कीर्तिकुमार ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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