द्रव्य तो असंख्यात प्रदेसी, ते तों सदा ज्यूँ रा ज्यूँ रहसी।

एक प्रदेस पिण घटें नाही, तीनूंइ काल रे मांही॥

भावार्थ : जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी है। उसके प्रदेश सदा ज्यों-के-त्यों रहेंगे। तीनों ही काल में इसका एक प्रदेश भी न्यून नहीं हो सकता।

स्रोत
  • पोथी : भिक्षु वांड़्गमय भाग 1 ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण, मुनि सुखलाल, मुनि कीर्तिकुमार ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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