विणती मां वागेसरी, अधर विराजो आय।

सूरां रो मांडूं सतक, जस री जोत जगाय॥

अरपूं सूरां अंजळी, अंतस रा अरमान।

प्रात उठतां नित करूं, शहीदां रो सम्मान॥

पग-पग पळकै पूतळै, पग पग पळकै पाट।

पग-पग सतियां सूरमा, मुरधर री इण माट॥

जस रा दीवा नित जळै, जस री जोत जगाय।

जस अंजस रहसी इळा, सूरां सुजस सदाय॥

वेद ग्रंथ नह वाचिया, पढिया नहीं पुराण।

पण सूरां सिंवरू सदा, गौरव कर गुणगाण॥

जप तीरथ जाणूं नहीं, हेली नहीं हिलोर।

सूरां रो सुमरण करूं, परभातां री पौर॥

वंदन, अभिनंदन करूं, मंडन जस महावीर।

खंडन खळदळ रो कियो, गहर वीर गंभीर॥

लड़ियो जद लंकाळ वो, भिड़ियो कर भाराथ।

अड़ियो जस अंकास में, पड़ियो नह वो प्राथ॥

कटियो कमधां केहरी, डटियो रण में आय।

हटियो नीं हिम डूंगरां, मिटियो माटी मांय॥

दळियो दळ दोयण तणो, गळियो गरब गुमान।

वळियो नह पाछो वळै, थळियो राखण शान॥

रमिया बाळू रेत में, जमिया जीतण जंग।

कटिया जो कसमीर में, रणवीरां नै रंग॥

पुहुप इळा पड़ियां पछै, परमळ तो मिट जाय।

सूरां सिर पड़तां समर, जस सौरम जग छाय॥

गुड़तां थकां गुडाळियै, सुणिया जामण बोल।

खाळू बाळू खेलतां, अनड़ हुवा अणतोल॥

परणी निरखै पीव नै, चंवरी झीणै चीर।

देसी सिर हित देसड़ै, करसी नांव कंठीर॥

कर कुरबांणी देसहित, पुहुमी ऊपर पोढ।

सज धज सुरग सिधावियो, अंग तिरंगो ओढ॥

ध्रू पळटै पळटै धरा, पळटै ससिहर भाण।

पण सूरां समहर गयां, पळटै नहं परवाण॥

साहस सूं लड़िया समर, झेलण अरियां झाट।

रसा रुखाळी रावळी, पग-पग थपिया पाट॥

सिरै परगनो शेरगढ, थळ आधूणी थाट।

दीसै सूरा दीपता, मुरधर री इण माट॥

क्यूं जावां तीरथ करण, की तीरथ से काम।

सूरां तीरथ शेरगढ, धर रूपाळो धाम॥

सिर ऊंचो रखियो सदा, हितचिंतक हिंदवाण।

कर नह इण ऊंचा किया, सूंप दिया निज प्राण॥

सखी अमीणो सायबो, खड़कावै रण खाग।

बटका झटका बाढतां, आवै अरियां झाग॥

हाथ पताका हिंद री, ऊंची राख उतंग।

रगत हिमाळै रासियो, उर में देस उमंग॥

दिस-दिस दीपै देवळै, दिस-दिस थपिया थान।

संत सती अर सूरमा, रंग है राजस्थान॥

रजवट राजस्थान रो, गढ जोधाणो जोर।

भल आथूणी भोम में, शेरगढ सिरमोर॥

हाटां दीसै हेत री, पाटां में परगट्ट।

माटां मुरधर मोकळी, राखण नै रजवट्ट॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : मदनसिंह राठौड़ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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