बिरखा जावे बरसती, धीर जीव धरेह।

ओळ्यूं थांरी आलिजा, मरवण नित करेह॥

सांवण आयो साजना, मधरो मेह पड़ंत।

बिलखूं बाटां जोवती, कद आवेला कंत॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप सिंह इण्डाली ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै