थां बिन दोरो रैवणों, परदेसां रे मांय।

ओळ्यूं आवै कामणीं, हियो अमूंज्या जाय॥

साथिङा संग दिन कटे, किणविध काटूं रात।

क्यूं बिसरायो कामणीं, करल्यौ म्हासूं बात॥

अंतस होयौ अणमणों, मनङौ धरे'न धीर।

जे थूं आवै गौरङी, ल्याऊं चंगो चीर॥

किणविध बैठी गौरजा, अंतर होय उदास।

कैवो मनरी बातड़ी, पूरण करस्यां आस॥

गौरी थारै रूप रो, कांई करू बखांण।

हियै रमाऊं हेत सूं, जीव जङी सी जांण॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : बंशीलाल सोलंकी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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