छावण लागी वादळी, हिवड़ै उमड़्यो नेह।

तरसण लागी तीजणी, फड़कण लागी देह॥

भावार्थ:- बादलियाँ छाने लगी हैं और हृदय में स्नेह उमड़-घूमड़ आया है, तीजनियां तरसने लगी हैं और उनकी देहफड़कने लगी है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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