पाप कर्म नें करणी पाप री, दोनूं जूआ छें तांम।

त्यांनें जथातथ परगट करूं, ते सुणजों राखें चित ठांम॥

पाप-कर्म और पाप की करनी दोनों अलग-अलग हैं। मैं उन्हें यथातथ्य प्रकट कर रहा हूं। उसे चित्त को स्थिर करके सुनें।

स्रोत
  • पोथी : आचार्य भिक्षु तत्त्व साहित्य ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती प्रकाशन
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