रळमिळ चाली तीजण्यां गाती राग मल्हार।

भणक पड़ी जद वादळी वरस पड़ी उण वार॥

भावार्थ:- तीजनियां हिल-मिल कर मल्हार राग गाती हुई चली। बादली के कानों में यह भनक पड़ते ही वह उसी समय बरस पड़ी।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
जुड़्योड़ा विसै