पंछी गावे गीत, बैठ रूंख री डाळ पे।
पवनां रच्या कवीत, हरख-हरख हरविणां॥1॥
पीय जगत रो जे’र, लीलकण्ठ ज्यूं रूंखड़ा।
मदरी-मदरी ले’र, व्हे वावे संसार में॥2॥
पाछा रूंख उगाय, आय उपरले पानड़े।
धरती मांय समाय, फळ सूं फेंक्या बीजड़ा॥3॥
परउपकारी रूंख, छांव’र फळ दे जीवतां।
जद ई जावे सूख, सुलग-सुलग सेवा करे॥4॥
दीखे कठे-कठेक, कल्पवृच्छ धरती परे।
इण्या-गिण्या नामेक, रेईग्या ई रूंखड़ा॥5॥
हर लेणी अग्यान, सेना शिक्षावाहनी।
घरां-घरां में आ’न, परचा बांटे ग्यान रा॥6॥
जगमग-जगमग जोत, जागे आखर-ग्यान री।
रैय अंधारो सोत, नैण मूंद अग्यान रो॥7॥
पेली सुख री चाह, करो मती विद्यारथी।
अतरी राखो ठाह, आगे आणंद मौज है॥8॥
अंधियारो अग्यान, ग्यान उजीतो जाणियो।
या म्हारी पेचाण, यां दोयां री व्है अेगी॥9॥
आखर-आखर जोड़, बालक’बूढ़ा भण रह्या।
मोट्यारा सूं होड़, हारै नीं करता थकां॥10॥
ठाम-ठाम इस्कूल, खुलग्या आखर देवरा।
भांत-भांत रा फूल, खिलै’क जाणै बाग में॥11॥