मायड़ भाषा बोलतां, म्हांनै गरब-गुमान।

दिन पर दिन इणरौ बधै, दुनिया में सनमान॥

मरुधर रै इण देस री, भाषा इमरत जाण।

सबद-रतन भेळा कर्‌यौ, लालस दिया प्रमाण॥

मिसरी घोळै लोक में, मरुवाणी सिरताज।

बिना मानता कारणै, सीर देवै राज॥

रुतबौ भाषा रौ बधै, सबळौ हुवै रचाव।

बोली-भाषा राड़ में, मती करौ टकराव॥

सोनल माटी देस री, रतनां री है खान।

वात, ख्यात अर वचनिका, पोथ्यां करै बखान॥

ढूंढाड़ी अर वागड़ी, कै हाड़ौती बोल।

मेवाड़ी मन भावणी, मेवाती अणमोल॥

भांत-भांत री बोलियां, सगळी है घणमोल।

मायड़ भाषा रसघुळी, साहित है अणमोल॥

मायड़ रै मुख सूं सुणी, वा भाषा थूं बोल।

मां री गोदी बैठनै, मन री गांठां खोल॥

अंग्रेजी है ओपरी, बाजारू है मोल।

क्यूं झिझकै रै बावळा, मायड़ भाषा बोल॥

नेतावां रै कारणै, अटकै सगळा काज।

भाषा खातर होयग्यौ, गूंगौ-बहरौ राज॥

नेता मांगै वोटड़ा, मिसरी घोळै बात।

जीत्योड़ा कद बावड़ै, सदा कर्‌यौ वै घात॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफिर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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