मायड़ भासा मन रमै, चलै सांस रै संग।

रीत प्रीत रूड़ी रखै, अंतस भरै उमंग॥

बढ़ चढ़ केस्यां बातड़ी, रैस्यां अपणै रंग।

माडै लेस्यां मांनता, जीतालां जंग॥

निज भासा नैं नाख दी, ठाडै थैला मांय।

नेता करै पैरवी, मिळै मांनता कांय॥

मायड़ थूं मत मानजे, म्हानै पूत कपूत।

निहचै लेवां मांनता, सांप्रत देय सबूत॥

कन्नड़ उर्दू कोंकणी, कीधी सब स्वीकार।

म्हारी मायड़ भास नैं, क्यूं टाळी सरकार॥

नेतां थांरी नाक में, निहचै कसां नकेल।

मायड़ मिळसी मांनता, (के)खतम तिहारौ खेल॥

उड़िया बोडो असमिया, कीधी सब मंजूर।

म्हारी मायड़ भास रौ, कांईं हुयो कसूर॥

मरुवाणी मनमोवणी, लूंठा बांगड़ बोल।

रूड़ी हद ढूंढ़ाड़ री, बोली है अणमोल॥

इगियारै पोथी अवल, सबदकोश संसार।

अेड़ी भासा नै अजै, राज तणी दरकार॥

पढ़ो पढ़ावौ पोथियां, मायड़ भासा मांय।

इण में म्हारा साथियां, करणो शंको नांय॥

मायड़ म्हारी होवजै, नाहक नहीं उदास।

लेय मांनता लाडला, इसड़ी पूरी आस॥

मायड़ भासा मोवणी, मोटो इणरौ नांम।

घूमर जै’ड़ा गीतड़ा, गूंज रिया हर गांम॥

सबद कोस हद सांतरो, साहित वडो विसाल।

मायड़ भासा मांयनै, सास्तर तणो सुकाळ॥

अंतस सूं दै ओळबा, कै सगळा शैबास।

मायड़ भासा मांयनै, अमट रहै अपणास॥

तेवड़ लीधी टाबरां, मिळसी मायड़ हक्क।

नीतर नेता लेवसी, चवड़ै धाड़ै धक्क॥

थोरा कर-कर थाकिया, सुणी नहीं सरकार।

माडी लेस्यां मांनता, राखौ हिय में खार॥

बाहर निकळो बेलियां, बोलो अपणां बोल।

मायड़ खातर मांनता, लास्यां ताळा खोल॥

मायड़ मिळसी मांनता, कर स्यां उछब अतीव।

सोरो होसी साथियां, जनता रौ जद जीव॥

खांमी परतख खोज नैं, निहचै करां निदांन।

दटक दिरावां देस में, मायड़ नैं भल मान॥

पढ़तां कदै पांतरां, लिखतां आय लाज।

मायड़ बोली बोलतां, कर स्यां सारा काज॥

जागो साहित जातरू, तन्द्रा देद्‌यो त्याग।

मायड़ मिळै मांनता, भूमि उजाळण भाग॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (दिसम्बर 2021) ,
  • सिरजक : मानसिंह राठौड़ ‘मातासर ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर
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