धाय धरा धूजी धसक, हुया मसाणा गांव।
सुपणा रा माळ्या ढस्या, काळ जीतग्यो दांव।।
किल्लारी रो कळपणो, नी भूल्या लातूर।
फेरूं प्रगट्यो कछम म, भूकम्पी नासूर।।
भुज कटग्यो बुझग्या दिया, गत गळग्यो गुजरात।
सूरत री बिगड़ी सुरत, रात बणी परभात।।
घर धूज्या धूजी धरा, भीतड़ला ढह जाय।
जीव उड़्या काया पड़ी, कुण री पड़गी हाय।।
छत वाळां सूं दत्त ही, लूट लियो सुख चैण।
घर डांडा ही फोड़द्या, सपन सज्योड़ा नैण ।।
जमीं जरख बण खा गई, पूतड़ला निरदोस।
मायड़ जद बैरण हुई, कुण नै देवां दोस।।
कालै थी किलकारियां, आभै झरता गीत।
आज्यूं उल्लू बोलता, बैठ्या फूटी भीत।।
नुवीं सदी म या बदी, चेतावै चित ग्यान।
कुदरत सूं नीं लड़ सकै, माणस अर विग्यान।।
कुण नै थ्यावस दे कुणी, हर कानी हड़कम्प।
भख पीबा मत आवजे, फेर कदै भूकम्प।।
ढ़ाणा होग्या ढूमरा, ढसग्या खेतरपाळ।
बिना रुखाळा बापड़ा, खेत मेर अर माळ।।
नी घबरावे मानखो, हिम्मत हाथां पाण।
फैरू चिणसी भीतड़ा, करसी नुवां निवाण।।