जिण दिन झड़ता देखिया पायो दुख अणमाप।

बळसी आपै बेलड़्यां मतना सेको ताप॥

भावार्थ:- जिस दिन से बेलों नें अपने सामने फूलों को झड़ते देखा है उन्हें अपार दुख हो रहा है। उस असह्य वेदना से वे स्वयं जलती जा रही है। अतः लूओं! तुम वृथा क्यों उन्हें अपने प्रचंड ताप से जला रही हो?

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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