ईखे घर ऊदल तणा, संपेखे असहास ।
विसकरमा रचिंयो वळै, करि बीजौ कैलास॥
मानसिंह(कछवाहा ) ने महाराणा उदयसिंह के महल देखे और मनोविनोद के स्थान भी देखे। वह महलों की शिल्पकला देखकर कहने लगा कि स्वयं विश्वकर्मा ने यह महल दूसरा कैलाश अर्थात् स्वर्ग ही बनाया है।