जपत जपत जिव्हा थकी, अंखियां पंथ निहार।

काग उड़ाती कामणी, कद आसी भरतार॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : आयुषी राखेचा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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