काची कूंपळ फूल फळ, फूटी सा बणराय।

बाड़ी भरी बंसत री, लूटी लूआं आय॥

भावार्थ:- कच्ची-कच्ची कोंपलें. फूल, फल और सारी वनस्पति, जो हाल ही में मुकुलित हुई थी, वसंत की उस हरी-भरी वाटिका को लूओं ने आते ही लूट लिया।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
जुड़्योड़ा विसै