माधव मत अधेरां धरो, मुरली कर में झाल।
रजनी रीझै आप पर, सजनी व्है बेहाल॥1॥
मानो म्हारी माधवा, नीची कर द्यो तान।
दुनिया दुस्मण प्रीत री, झट पड़सी उण ध्यान॥2॥
माधव मुदरी तान में, मुरली मती बजाव।
अंतस होवै वेदना, भटकै मन रा भाव॥3॥
आव आव री रट नहीं, भली माधवा देख।
थारै म्हारै मेळ रा, लिखिया विधि न लेख॥4॥
कर कंकण कटि किंकिणी, पग पायल झणकार।
सुण समझावै केशवा, परतख मती पुकार॥5॥
सुणो श्याम सिंझ्या थयी, छेड़ो मुरली टेर।
रात रीझा मनमोवणी, होवै नीं सवेर॥6॥
तप तीरथ मुरली घणां, किया अलूणां व्रत्त।
कमर ऊंचावत सांवरो, अधर चाखती नत्त॥7॥
नैण नीर काजळ जमुन, पलक बणी पणिहार।
भौंह तणै तट रोज घट, भरती कृष्ण मुरार॥8॥
अलकां उळझी थारली, ओळूड़ी घनश्याम।
जमुना तट नित रास रा, मन अंकित चितराम॥9॥
विरह पीर री कानजी, किण नैं करणी वात।
जब लग देखूं पीर है, आदि न अन्त लखात॥10॥
केम विसारी कानजी, थळवट राधा थार।
ना बरसावै बादळी, तन—मन धखै अंगार॥11॥
आखर आखर लाख रा, कथूं हियै रा भाव।
कियां विसारी कानजी, कहजो जादवराव॥12॥