बादळ उमट्या मिलणबी, धरती भरल्यां बांथ।

पवन झकोरा झूमता, मिलबा आया साथ॥

झिरमिर-झिरमिर छांटड़ी, पायल री झणकार।

बाजै छम-छम आंगणै, मरवण री मनवार॥

बिरखा आई आंगणै, ज्यूं सूरज परभात।

नाच्या मन रा मोरिया, कर्‌यो सुरंगो गात॥

सावण मनभावण बण्यो, ठंडी चालै पून।

झिरमिर छांट सुहावणी, आभै भांग्यो मून॥

जबरी घणी उडीक सूं, बरस्यो सावण मेह।

राजी होया रामजी, भीजी धरती देह॥

बेलां पसरी बाग में, फूलां चढगी देह।

मन में हरखी मोकळी, सावण बरस्यो मेह॥

बिरखा बरसी मोकळी, बादळ तोड़्यो मून।

हींडो हींडां चाव सूं, चाली ठंडी पून॥

तिरिया-मिरिया कर दियो, सावण झड़ी फुवार।

ऊंचो आयो उफणतो, गोडै सुदो गुंवार॥

काचर लोइया टींडसी, गुड़कै घेर-घुमेर।

जाणै गिंडी खेलर्‌यो, सावण च्यारूंमेर॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : शिवराज भारतीय ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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