पहली सांत सुभाव छो, अब होग्यो खूंखार।

मोबाइल कै आसरै, प्यार बण्यू बोपार।।

अब धन जोबन रूप सूं, घटती बढती प्रीत।

बिन स्वारथ यारी करै, गयो जमानू बीत।।

दारू पीवै दो जणा, बतळा अपणू भाई।

दो प्यालां कै पीवंता, मदर पिदर हो जाई।।

ईं भौतिक जुग मं घणा, होड लगाता लोग।

करै कमाई पाप की, छ्हावै दूणू भोग।।

बचपण पूर्ण रुखाळियो, निज डाळ्यां कटवाय।

आंबो अब बूंळ सूं, कहत कटीलो हाय।।

मतलब की अब दोसती, दुनिया को दस्तूर।

खाया-पीया फांकता, पातळ दूना दूर।।

मतलब पे मीठो घणू, मतलब खडियो दूर।

इक हेरो अर दस मिलै, दुनियां में भरपूर।।

पाप पुण्य को डर नहीं, कांई करै भगवान।

केवल मतलब साधता, खुदगरजी इंसान।।

आथूणी चाली हवा, घण ही तेज बहाव।

श्राध्द संस्कृति को करै, वेलनटाइन मनाव।।

ले पहिया विज्ञान का, दौड़ रियो संसार।

ज्यो चाहो संग चालबो, खुद बदलो रफ्तार।।

स्रोत
  • सिरजक : जयसिंह आशावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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