हरख हळचळ हियै हुवै, व्हालो वरण विसेस।

सुलखणा सुघड़ सूरमा, दीपै आखो देस॥

चूरू सरदी चांवती, मरद बणै मजपूत।

सींव रुखाळा सूरमा, नारी जणैं सपूत॥

गळिया चौड़ी गांव री, भांत-भांत रा खेल।

गया गडींगा खांवता, अब जण रेलमपेल॥

घी—रूई रो तन मिलै, दिवलो कह समझाय।

मेळ हुवै जद मन मिलै, बात करो बतळाय॥

मुळक मत छोड़ो मिनखां, मुळक गयां है मोत।

मुळक्यां जगत ज्यू मिसरी, जीवण चोखी जोत॥

जीभ भरी हो चासणी, नैण भरी हो प्रीत।

कदम कदम नित पारखी, सो बणज्या जगजीत॥

बिरछ मत काटो बावळो, काट्यां मिटै पिछाण।

बणै पराया पारखी, निज बणज्यां अणजाण॥

चोंचधारी चुगो करै, बैठे बिरछ सरीर।

जगती तिरस मिटाय दै, बदळ मेघ तासीर॥

आवतड़ा आदर करै, छायां बीच बिठाय।

सीख देवणो बायरो, रीत नीत समझाय॥

नीत अनीत रो नखरो, कर देखो भल कोय।

रूप रहै ही रुतबो, हळका कारज होय॥

सक्ल मिल्यां अक्ल नहीं, नह सक्ल मांय सार।

हियै मांय उपजै नहीं, झुठी बकै गिंवार॥

नागो नाचौ चौवटै, बण सबळो सिरदार।

धूळ नांखयो भायला, मत करज्यो तकरार॥

दगाबाज सब बुरो, चिपकै चरणां रोय।

गरज निकाळ गुरो करै, अपणो कारज होय॥

हेलमेट तुझ हेत नै, समझे जाणै सोय।

घरवाळा निरखै तनै, जीव रुखाळ मोय।

सिर सूंप्यो जुझार हुया, बण्या देवळी थान।

जनहित जग जीवन जियो, जय जय राजस्थान॥

स्रोत
  • सिरजक : मातु सिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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