घणो आकरो सोगरो, सिगड़ी माथै सेक।

नणदल सा रा बीर जी, मुळकै म्हानै देख॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : आयुषी राखेचा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै