गाज समझूं, वादळी मतना पळका मार।

बूंदां लिखदे बांच लूं साजन रा समचार॥

भावार्थ:- बादली, मैं तेरी गरज में नहीं समझती। तेरा यह चमकना भी व्यर्थ है। बूंदों के रूप में साजन के समाचार लिखदे जिन्हें में पढ़ लूं।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
जुड़्योड़ा विसै