वाड़ी वावड़ी, सर केरी पाळ।

वै साजण वै दीहड़ा, रही सँभाळ सँभाळ॥

यह वाटिका यह वावड़ी, यह तालाब की पाल, वे सज्जन और वे दिन इनका बार-बार याद करती हूँ।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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