ए च्यारूं भला ने भुंडा होय, एक धारा न रहें कोय।
केइ खायक भाव रहसी एक धार, नीपना पछे न घटें लिगार॥
भावार्थ : ये चारों भाव-जीव अच्छे और बुरे होते हैं। ये एक धार नहीं रहते। क्षायक भाव एक धार रहेगा, निष्पन्न होने पर फिर घटता नहीं।