दुरगा तुरँग सवार है, कटि बन्धी द्वै खाग।

है टुकरा इक हाथ में, एक हाथ में बाग॥

मग महँ खावत जात हैं, दाँतन सों वह तोर।

देश-भक्ति को दे रह्यो, परिचय भट रट्ठौर॥

चित्र शाह सेवा+ लखत, बोल उठ्यो वहिं बेर।

करहुँ बन्ध याकों अवस, पै लगि हैं कछु देर॥

दुरगा को पुनि चित्र लखि, शाह कहेउ चिल्लाय।

यह चीता तो क्रूर है, हम सों नहीं बसाय॥

याको कोऊ भांति सों, करि सकहुं मैं जेर।

छुद्र कुदाली तें कटहि, कैसे दीर्घ सुमेर॥

स्रोत
  • पोथी : दुर्गादास चरित्र ,
  • सिरजक : केसरी सिंह बारहठ ,
  • संपादक : जसवंत सिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय