अंतर प्रीत अथाह, संचय परहित संपति।

शहरां सूं सदाह, रुड़ा गांव रा रुंखड़ा॥

आखर अंतस औपता, प्रीत सवाई जाण।

संकट भेळा व्हे सदा, गावां तणों प्रमाण॥

समंदर लागे सोवणां, निरमळ जिणरो नीर।

मरुधर मांहीं मानवी , निरखत बैठा तीर॥

गैरा समंद ऊंचा गढां, ओपे गिरी चहूं ओर।

मरुधर म्हारे मनबसी, काळजिया की कोर॥

पूरब मैं उगियो पतंग, महकी धरती मात।

खेतां में छायी खुशी, पहर भयो प्रभात॥

बरसण आयी बादळी, करसां हिवड़े कोड।

मधरा नाचे मोरिया, हिवड़े करता होड़॥

हरदम दरसे हरखतो, बिरली जिणरी बात।

भारत मैं मन भावतो, गरबीलो गुजरात॥

अंतर प्रीत अथाह, संचय परहित संपति।

शहरां सूं सदाह, रुड़ा गांव रा रुंखड़ा॥

आखर अंतस औपता, प्रीत सवाई जाण।

संकट भेळा व्हे सदा, गावां तणों प्रमाण॥

सुन्दर छवि निरखे सदा, सुर मुनि शेष महेश।

सुरगां सूं भी सोवणों, धोरां वाळो देश॥

चहके रागां चौतरफ, परसत जागे प्रीत।

मनडे़ थांरा मरूधरा, गडिया गहरा गीत॥

सिर साफो सम्मान रो, मूंछां ताव हमेश।

सुरगां सुं भी सोवणों, धोरां वाळो देश॥

बोली मीठी खांड सी, सदा निराळो भेष।

सुरगां सुं भी सोवणों, धोरां वाळो देश॥

मरूधर धोरा मोकळा, बिरळा रुंख विशेष।

सुरगां सुं भी सोवणों, धोरां वाळो देश॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप सिंह इण्डाली ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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