करणी भरणी जाणता, जद भी पापाचार।

बिन धरती फसलां चहे, अस्या नर धिक्कार।।

अगहण सुद एकादसी, जगती तारण हार।

श्री कृष्ण मुख सूं लियो, गीताजी अवतार।।

दरसण तो आंख्यां करै, परसण च्हावै हाथ।

नाक सुगंधी पीवता, जिह्वा उपजै बात।।

निज कर्मा सूं ही बंधी, बिगड़ै सुधरै बात।

अपणू करम सुधारबो, खुद कर्ता के हाथ।।

ईश्वर आगै न्ह चलै, कोई भी तरकीब।

करम मुताबिक फळ मंड्यो, ही मिलै नसीब।।

ना मेड़ी ना माळिया, मत कर चित्त मलाल।

साथी सदा गरीब का, भगवन दीनदयाल।।

बृन्दाबन राधा मय, राधा में त्रिलोक।

राधा मंगलदायिनी, हरती भव का शोक।।

ईश्वर नै ज्यो भी दियो, घणा मान स्वीकार।

हाथ जोड़ सिर नै झुका, मान घणू आभार।।

होश नहीं तन को रहे, लेय कोई चित चोर।

वे गोप्यां ही कृष्ण सूं, कहती माखन चोर।।

लेता हरि को नांव ज्यो, सुख हिन्दळोटा हींद।

सदगेला पे चालता, सोता सुख की नींद।।

स्रोत
  • सिरजक : जयसिंह आशावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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