तन सूं कासी में खड़्यो, मन दौड़ै घरबार।

तीर्थां की अस जातरा, मत दीज्यै करतार।।

करणी भरणी जाणता, जद भी पापाचार।

बिन धरती फसलां चहे, अस्या नर धिक्कार।।

तन पे तो छापा तिलक, मन में काम‘र राग।

जगती नै लूटत फिरै, संतां को कर सांग।।

साधू को जद भेस धर, उपदेशै अण अन्त।

मुश्किल होग्यो छांटबो, कुण तो सन्त असन्त।।

चोटी रख पण्डित हुया, मूंछ राख सिरदार।

जद गुण हेरै सामलो, पावै बंटाधार।।

खीर खाण्ड भोजन मिलै, रस गोरस भरपूर।

असी राह साधू घणा, भगवत भगती दूर।।

राम नाम की ओढ़णी, तुळछी माळा लार।

तिलक छाप सूं तन रंगै, मांगै बीच बजार।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत
जुड़्योड़ा विसै