मत कर कुड़कुड़ बावळी! मन में थ्यावस राख।

तातो-ठंडो जो मिलै, स्सौ धीरज सूं चाख।।

हाथ अपणै कीं भलो, बुरो'र जोग-कुजोग।

आछी-माड़ी जो हुवै, सगळी हंस-हंस भोग।।

खेल सैंग ह्वै भाग्य रा, मत ना हुयै उदास।

दो हाथां सूं ह्वै, करे! किण स्यूं किसड़ी आस।।

बीजा आडा आवसी, भरम झूठा पाळ।

अेक करम निज, दूसरो सांवरियो रिछपाळ।।

तूं तो है चातर, समझ! मत बण मूढ-गंवार।

नीं हाथां कीं आपणै; भलो-बुरो स्वीकार।।

मिनख जमारो मिळ गयो, बडै भाग री बात।

क्यां बेई पछतावणो, अबै करै दिन-रात।।

मिनखाजूणी रो हुवै, इतणो-सो तथ-सार।

कर्म करो! ह्वै तो करो, थोड़ो पर-उपकार।।

क्यूं किणनै ओळभा? क्यूं किणनै दोष।

काळ किणीं दिन चाणचक, मिणियो दे'सी मोस।।

हेली! तूं चातर, थंनै कांईं देवूं ग्यान।

राजिंद मती करावजै, जग हांसी घर हाण।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेंद्र स्वर्णकार
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