हाड़ां हूं चावळ हुवा, रू, राई, खड़, धन्न।

तो असताई संभळौ, ते क्यूं ढूकै मन्न॥

स्रोत
  • पोथी : मुहता नैणसीं री ख्यात, भाग 2 ,
  • संपादक : जिनविजय मुनि ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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