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दूदो कहै तिलोकसी
आसराव रतनू
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दूदो
कहै
तिलोकसी,
तो
सिर
छत्र
धरेह।
परत
न
भंजां
आपणो,
गढ़
छळ
घणो
करेह॥
स्रोत
पोथी
: मुहता नैणसीं री ख्यात, भाग 2
,
संपादक
: जिनविजय मुनि
,
प्रकाशक
: राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
,
संस्करण
: प्रथम
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