ते पाप उदें दुख उपजें, जब कोई म करजों रोस।
आप कीधां जिसा फल भोगवें, कोई पुदगल रों नही दोस॥
उस पाप का उदय होने से जब दुःख उत्पन्न हो तो कोई रोष न करे। जीव जैसे कर्म करता है, वैसे ही फल वह भोगता है। इसमें पुद्गलों का कोई दोष नहीं है।