कथा सुंणे जे अहंमनी, नरनारी सब लोग।

जेत वरतो सुख भोगवे, जांह विसन के लौक॥

भावार्थ:- संतकवि डेल्हजी नै इण दोहै में कथा अहंमनी रै सुणण रौ महातम बतायौ है। जकां नर-नारी इंण कथा नै साचै मन सूं सुणै है वे संसार में जदै तक जिवतां है तब तक सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करसी और मरणै पछै विसन लोक री प्राप्ति होयसी॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान ,
  • सिरजक : डेल्हजी ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर
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