हिवें पाप आवाना बारणा, पहली कहूं छुं तांम।
ते जथातथ परगट करूं, ते सुणों राखें चित ठांम॥
अब मैं पहले आश्रवों का पाप आने के द्वारों का यथातथ्य वर्णन करता हूं। उसे एकाग्रचित से सुनो।