गुन आयो तब जानिये, अवगुन नाम विलाय।

अरथ भलो सो परसरां, जो अनरथ बहि जाय॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : परशुराम ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : 6th
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