बाळ्या बूजा बांठड़ा, काळी पड़गी देह।

मिरगो पूछै मरुधरा, कद बरसैलो मेह॥

बळतो बाजै बायरो, बरसै कोजी लाय।

मरुधर माटी ऊकळै, अब बरसण नै आय॥

रातां लूआं लूटली, नहीं नींद रो काम।

दिन नीं बीतै भायला, बळरयो डीलां चाम॥

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : प्रहलाद राय पारीक
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