सुवरण बरण लजावती हिरणां पीठां जेह।

तप लूआं रै ताव में तांबाबरणी तेह॥)

भावार्थ:- हरिणों की जिन पीठों की चमक के सामने सोने का रंग भी लज्जित होता था वे ही आज लूओं के ताप से तप कर तांबे के सदृश हो गई हैं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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