सुवरण बरण लजावती हिरणां पीठां जेह।
तप लूआं रै ताव में तांबाबरणी तेह॥)
भावार्थ:- हरिणों की जिन पीठों की चमक के सामने सोने का रंग भी लज्जित होता था वे ही आज लूओं के ताप से तप कर तांबे के सदृश हो गई हैं।