मथरा नगर मंझार, तट जायौ जमुना तणै।
बाळा तिणि बळिहार, वेळा वसदेरावउत॥
रथ वणियौ पंख-राव, वामै अंग राधा वणी।
विच ताहरौ वणाव, बणियौ वसदेरावउत॥
जपिया मानव जाप, जीहां हरि जपियौ नहीं।
मूं पड़ियउ मा-बाप, बांसै वसदेरावउत॥
पुठी रख परमेस, आगैरख तूं ईसवर।
सुजि दाहिणै सुरेस, वामै वसदेरावउत॥
करतळ सह करियाह, चत्रभुज तो चीतारियै।
बीसरियै वरियाह, वरजित वसदेरावउत॥
कुंदण छांडै काच, कांइ प्रहे आतम तिकल।
मळमै मंडळ म राच, विमळ त वसदेरावउत॥
तो आगै तरुआरि, नांखै नर नमिया नहीं।
हार् यां आगळि हार, व्हैसी वसदेरावउत॥
हरि सूं हेक-मनांह, आगळि जइ ऊभा नहीं।
बैससि तिकै बियांह, वांसै वसदेरावउत॥
आणंद घण उरि आण, आणंद आणदिया नहीं।
दीसै ताइ दिवाण, विलखा वसदेरावउत॥
राधा-वर पद-रेण, भ्रगुट धरै नह भेटिया।
तू लख लीजै तेणि, वाए वसदेरावउत॥
जपियो जां जगदीस, जगदीसर जपियौ नहीं।
वधिया घटिया वीस, विसवा वसदेरावउत॥
श्रीवर सूं विण साच, जेहै मिण मानव जनम।
केसव थियो ज काच, विणसै वसदेरावउत॥
अेह अम्हां अरदास, प्रिथु जंपै तिल-पुहुप परि।
वाया तो जस वास, वासै वसदेरावउत॥
नरहर तेह नरेह, लाधौ फळ लाधै तणौ।
जस वरणवियौ जेह, वाया वसदेरावउत॥
विणजै वांणीकाह, मधुसूदन माटै मुगति।
वाउवौ विणजै वाह, वांछै वसदेरावउत॥
माहरी थयी मुरारि, गोविंद तो लागी गुणै।
सुक्यारथी संसार, वाणी वसदेरावउत॥
नायक जग तो नाम, लखमीवर थ्यो लागतां।
सुजि फळदायक साम, वायक वसदेरावउत॥
पूजि तुम्हीणा पाग, करतां सुणतां कीरतन।
लागी लेखै लागि, वेळा वसदेरावउत॥
गाया नह गोपाळ, श्रीवर तो नायां सरणि।
केसव गयौ ज काळ, व्रिथा स वसदेरावउत॥
गोविंद विण तो गाथ, जाइ जिके जगदीसवर।
निस सारीखा नाथ ! वासर वसदेरावउत॥
किरि कूटियै कपाळ, त्रीकम ! तो विमुखां तणा।
घड़ी-घड़ी घड़ियाळ, वाजै वसदेरावउत॥
मास वरस दिन में न, पाख पहर खिण घड़ी पलक।
कान्हवा मनां कदे न, वीसरि वसदेरावउत॥
जाप तुम्हीणा जाज, परमेसर करतां पड़ी।
तो भांजै तो भाजि, वेथी वसदेरावउत॥
अवतरियौ अवतार, तूं मेटण भगतां तणा।
भगवत टाळण भार, वसुधा वसदेरावउत॥
सगळां थयौ संतोख, आयौ तूं नंद आंगणै।
घर-घर मंगळ धोख, व्रज में वसदेरावउत॥
तूं लिखमी उर लागि, पनग गोद नंद पालणै।
पै पोढ़ियौ पिराग, वड़ सिर वसदेरावउत॥
पै-निध पौढणहार, त्रीकम नंद-घरणी तणै।
किम ध्राप्यौ करतार, बोबै वसदेरावउत॥
दै तैं मुख दीधाह, प्रभू पयोधर पूतना।
पीधै तैं पीधाह, विख तैं वसदेरावउत॥
सीकां सगठि थयाह, मिणि-मिणि पग जोवै महर।
ग्रहि जूजुवा गयाह, विध किण वसदेरावउत॥
करि उर ऊपर काम, त्रणा वरै क्रिसणा तणा।
रमियौ आतमरांम, विगतौ वसदेरावउत॥
फुले फळिया ताइ, मोती माता आंगणै।
रमतै जादव राइ, वाया वसदेरावउत॥
निलवि-निलवि नवनीत, तैं सिगळा गोकळ तणा।
पोख्या पूरब प्रीत, वांनर वसदेरावउत॥
माहब ! तैं मुख मांहि, जणणी दाखवियो जगत।
कीन्ह भखण भ्रदकाह, व्याजै वसदेरावउत॥
गळ सूंती गयतूळ, बाळक ऊखळ बांधियौ।
ऊपाड़ै आमूळ, व्रिख बे वसदेरावउत॥
मोर मुगट बनमाळ, वित्र वित्र धरि धात वन।
वेण वखांणि विसाळ, विहरत वसदेरावउत॥
क्रिसन वछासुर काह, पूंछ ग्रही पाछाड़तै।
गात्र जूजुवा गयाह, बिछूड़ै वसदेरावउत॥
झाड़ उखेड़ै जाड़, जिम रमतै जगदीसवर।
बग कीधौ बे फाड़, वारज वसदेरावउत॥
अंतर नंद अवासि, हींडत किम लहुओ हुयो।
अथ अंत लग आकासि, वधियौ वसदेरावउत॥
रचना तो अवरेखि, हूं केतिक केतां कहुं हरि।
पड़्यौ विधाता पेखि, विसमै वसदेरावउत॥
भुवंग असुर सिस भांण, तो माया मानव त्रिया।
आळूधा ईसांण, ब्रह्म वसदेरावउत॥
तो सरिसो तिरलोय, बळि-बंधण नह बापड़ा
क्रिसन न हालै कोय, वाद ज वसदेरावउत॥
प्रभु ! दे फणि-फणि पाग, थइ-थइ तत करतो थियो।
नाचवियौ तैं नाग, विहवळ वसदेरावउत॥
दमि कीधौ निरदोस, काळी काळिंदी क्रिसन।
रमणिक गो तजि रोस, विसहर वसदेरावउत॥
अनत सखा अवनाइ, जु तै ज वन-वन जाळिबा।
पीधै थयौ प्रभाइ, विसनर वसदेरावउत॥
महा असुर खर मारि, माहब बीजा मारिया।
राते कीधी रारि, विरतै वसदेरावउत॥
हाथळ हणियउ जाइ, रूप जु तैं बळराम कै।
सत्र सिर मानी साइ, बजर कि वसदेरावउत॥
बदन विहाणि विहाणि, सूभरता कीन्हा सफळ।
एह नयण आपांणि, विकसै वसदेरावउत॥
वनिता करै विनोद, आंवता सिस अेकठा।
कामणि वदन कमोद, विकसै वसदेरावउत॥