मुखड़ा वाळी मुळक गयी, अळगौ गियो अपणास।

झूठा दाँत तिड़काय' रियां, कुण'नै कैहद्'या खास॥

पळका पड़ती काया मोवे, जारो अंतस रियो डरपाय।

नीलकंठ धार्'णीयो पंछी, स्याप कीटला खाय॥

बाँह पसार बाथ्यां मिलो, अळगी करद्'यो आंट।

रिश्ता वाळी डोल्डी'क क्यूं देवो गुळगांठ॥

बिन्यां गरज अर काज'के, राळै' चिमटी रेत।

नि:स्वार्थ रेवे टिकियोड़ो, बोहिज सांचो हेत॥

पर घर लागी लाय, बेली हटकेण बुझावे।

खुद' रे घर चूल्हा च्यार, चतर' कुण चेतावे॥

शहरा आगण चीकणा, नहीं इणा हेत।

पग धसे पर प्रीत दरसावे, मारे गाँव री रेत॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : ओम बटाऊ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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