सावण आयो सोवणों, मधरो बरसे मेह।

आप आवण री आस सुं, नैणां मांहीं नेह॥

किण ताहीं दिवला जगे, किण ताहीं सिणगार।

किण ताहीं पलकां बिछी, सांच बता दे नार॥

स्वागत मं पलकां बिछी, साजन हित सिणगार।

दिवला जागे कोड में , भल आया भरतार॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप सिंह इण्डाली ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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