अम्बर में उमड़ी घटा आभै अटकी आंख।

चढ-चढ छातां छोळ में मोर संवारै पांख॥

भावार्थ:- उमड़ती हुई घटा को देख कर आकाश में आंखें अटक गई। छतों पर चढ़ कर आनंदातिरेक में मोर पांखें फैला रहे हैं।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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