पीव सूरत सुहावणी, अंतस बसगी जाय।

बिसराई बिसरे नहीं,ओळ्यूं घणीं सताय॥

पीव तणी पाती लिखूं भीजै कागद कोर।

भूल्या कीकर बालमां, तङपे थारी गौर॥

पाती लिखदी पीव ने, मांड हियै रा भाव।

अधबिच मांड्या ओळभा, नीचै तन रा घाव॥

पाती बांचत पीव जी, मनङै भया उदास।

तज राजा री चाकरी, करी घरां री आस॥

आया साजन बारणै, आधोङी अधरैण।

मरवण पग पहछाणियां,आया म्हारा सैण॥

टग टग महलां ऊतरी, आगळ दीन्ही खोल।

भीतर आवो बालमां, बोली मीठा बोल॥

साजन सूरत देखनै, हरखी मन रै मांय।

नैण झिरोळौ मांडियो, नेह नीर टपकाय॥

गई रसोङै गोरङी, रांधी मोगर दाळ।

पतळी पोयी रोटियां, संजै दीन्ही ढाळ॥

सोवन थाळ परोसियो, ऊपर घिरत घलाय।

जीमौ म्हारा सायबा, मरवण हाथ जिमाय॥

महलां चढगी गौरङी, दीन्ही सेज बिछाय।

बैठो म्हारा सायबा, दुखङा दूं बतळाय॥

मरवण री सुण बातङी, हियै लगायो हाथ।

थर थर कांपी गौरङी, मखमल सेजां माथ॥

मदरो मेळो देखनै, दिवलो गयो निदाय।

दोय प्राण ऄक होया, कामण सुख सरसाय॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : बंशीलाल सोलंकी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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