जिण वासिग नाथियो, जिण कंसासुर मारै।

जिण गोकळ राखियो, अनड़ आंगळी उधारै।

जिणि पूतना प्रहारी, लीया थण खीर उपाड़ै।

कागासर छेदियो, चंदगिरि नांवै चाड़ै।॥

एतळा प्रवाड़ा पूरिया, अवर प्रवाड़ा प्रभ सहै।

अवतार देख जंभ ‘अलू’, कन्ह तणो अवतार कहै॥

जिसने यमुना को विषाक्त बनाने वाले महा विषधर कालिय को वश में किया, जिसने प्रजा-पीड़क नराधम कंस जैसे राजा का संहार किया, जिसने अपनी कनिष्ठा अंगुलि पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर इंद्र के प्रकोप से ब्रज को बचाया, जिसने शिशु रूप में दूध पीते हुए मायाविनी पूतना के विष-लेपन किये हुए स्तनों को उखाड़ कर प्राण हर लिये, जिसने छद्मवेशी उत्पीड़क बकासुर का वध किया—ऐसे अनेक दिव्य कर्मों के करने से संसार में भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति अक्षय बनी हुई है। भगवान के इतने अद्भुत चमत्कार तो हो चुके हैं और आगे जो भी चमत्कार होंगे वे केवल उसके ऐश्वर्य से ही संभव हैं। अलूनाथजी कहते हैं—जम्भदेव के दर्शन कर ऐसा प्रतीत होता है मानो वे श्रीकृष्ण के ही अवतार हों।

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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