बाजिंद ताण विभांण भांण तक रहै अचंभा।
वीर बडाळां बरण रचै वरमाळा रंभा।
डहरू संकर डहैं, करै जोगण किलकारां।
रुडै सुंधड़ो राग, पड़ै सर सोक अपारां।
राघव उमंग हंस-हंस रटै, खेलूं खगा खतंग रो।
रिम हणै आज पुरूं रळी, जोडूं अखाड़ो जंग रो॥